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राम कथा रस वाहिनी

इस पुस्तक में भगवान श्री सत्य साई बाबा
द्वारा राम कथा पर लिखा गया लेख प्रस्तुत किया गया है | 

आंतरिक अर्थ

            राम प्रत्येक शरीर में अन्तरवासी हैं वे प्रत्येक मनुष्य में आत्माराम आनंद के स्रोत हैं उस आंतरिक स्रोत से निस्सरप्त कृपा , शांति और आनंद प्रदान कर सकती है राम मानवता को प्रेम और एकता के सूत्र में आबद्ध रखने वाले प्रत्येक नैतिक नियम में धर्म के मूर्त रूप हैं । रामायण दो शिक्षाएं देती है , वैराग्य का मूल्य और प्रत्येक प्राणी में दिव्यत्व की अनुभूति की आवश्यकता । ईश्वर में विश्वास और भौतिक लालसाओं से विरक्ति मानव मुक्ति की कुंजियां हैं इन्द्रिय जगत को त्यागो तुम्हें राम मिलेंगे। सीता ने अयोध्या का ऐश्वर्या त्यागा , इसीलिए वे वनवास में राम के साथ रह सकीं। जब उन्होंने स्वर्ण मृग की ओर लालसा पूर्ण दृष्टि डाली और उसकी इच्छा की तो वे राम से विलग हो गईं। वैराग्य से आनंद की प्राप्ति होती है मोह से दुख मिलता है । संसार में रहो किंतु उसके ना बनो । भाई ,साथी ,सखा और राम के अन्य सहयोगी- ये सभी धर्म से पूर्ण मनुष्यों के उदाहरण हैं । दशरथ दस इंद्रियों से युक्त भौतिक शरीर के प्रतीक हैं । तीन गुण सत, रज ,और तम तीन रानियां है। जीवन के चार लक्ष्य/ पुरुषार्थ -4 पुत्र हैं। लक्ष्मण बुद्धि हैं,सुग्रीव विवेक हैं , बालि विषाद हैं , हनुमान साहस के मूर्त रूप हैं। माया के समुद्र पर पुल का निर्माण होता है। तीन राक्षस राज गुणों के प्रतीक हैं-रावण राजसिक गुण का , कुंभकरण तामसिक गुण का और विभीषण सात्विक गुण के । सीता उस ब्रह्म ज्ञान अथवा परम सत्य की अनुभूति की प्रतीक हैं, जिसे व्यक्ति को संसार के दुख झेलते हुए प्राप्त करना है। रामायण की भव्यता का विचार करते हुए अपने हृदय को पवित्र और सशक्त बनाओ ।इस विश्वास में दृढ़ स्थित हो जाओ कि राम ही तुम्हारे जीवन की वास्तविकता हैं ।

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